वीरेंद्र यादव ( पटना )
राज्यपाल की लेजिस्लेटिव कांउसिल में सामाजिक बदलाव और प्रतिनिधित्व के कई मुद्दों पर महत्वपूर्ण ढंग से चर्चा होती थी। इसमें एक प्रमुख मुद्दा था आरक्षण का। 18 मार्च, 1931 को बजट सत्र के दौरान अनुदान मांग पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए स्वयंबर दास (यादव) और बिमला चरण सिंह (कुर्मी) ने यादव और कुर्मी के लिए पुलिस बहाली आरक्षण की मांग की थी।
वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत और प्रसन्न कुमार चौधरी की पुस्तक बिहार में सामाजिक परिवर्तन में इस बहस का उल्लेख करते हुए लिखा गया है कि 1930 में लेजिस्लेटिव काउंसिल में गैरसरकारी सदस्य के रूप में स्वयंबर दास और बिमला चरण सिंह का मनोनयन किया गया था। 1931 में बजट सत्र में पुलिस विभाग की अनुदान मांग पर चर्चा करते हुए स्वयंबर दास ने कहा कि पुलिस बल के अधीनस्थ पदों पर कुछ विकसित जातियों की इजारेदारी है। दुर्भाग्यवश ऐसा विश्वास किया जाता है कि श्रेष्ठता और गुण जन्मजात होते हैं।
पुलिस अधिकारियों और सिपाहियों की भर्ती में भी यही बात लागू होती है। मैं जिस सुमदाय से आता हूं, वह शारीरिक शक्ति के रूप काफी क्षमतावान समुदाय है। पूरे भारत में राजपूतों को छोड़कर कोई और उससे टक्कर नहीं ले सकता है। शारीरिक श्रेष्ठता के लिहाज से वह राजपूतों, भूमिहारों और ब्राह्मणों आदि के समान है। अत: यही उपयुक्त समय है कि सरकार इस समुदाय के साथ न्याय कर उदाहरण पेश करें।
बहस को आगे बढ़ाते हुए बिमला चरण सिंह ने कहा कि मैं कुर्मी समुदाय की ओर से बोल रहा हूं कि पुलिस बल में भर्ती के लिए वे (कुर्मी) सबसे उपयुक्त हैं। वे एक सैनिक जाति से रहे हैं। हंटर, एन क्रूक और बुकानन के संदर्भों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि संयुक्त प्रांत की सरकार ने उत्तर-पश्चिम प्रदेश और अवध के पुलिस महानिरीक्षक को आदेश दिया है कि पुलिस बल में भर्ती से कुर्मियों को वंचित नहीं रखा जाये। अपने भाषण के अंत में उन्होंने कहा कि हमारे मामले पर विचार किया जाये और हमें इस सेवा में समानुपातिक हिस्सा दिया जाये।
उसी साल 21 अगस्त को स्वयंबर दास ने लेजिस्लेटिव काउंसिल में प्रस्ताव रखा था, जिसमें सरकारी सेवाओं में तमाम जातियों और समुदायों को समुचित प्रतिनिधित्व देने के तौर-तरीके निरुपित करने के लिए सरकार से तीन अधिकारियों और चार गैर अधिकारियों की एक समिति गठित करने और इस समिति द्वारा अपनी अनुशंसा सरकार के समक्ष रखने का परामर्श दिया था।
उन्होंने इस पर वाद-विवाद के बाद प्रस्ताव वापस ले लिया था। प्रस्ताव वापस लेते हुए उन्होंने कहा कि इस सदन में मेरे प्रस्ताव का यही हश्र होगा, इसका मुझे अंदेशा था। इस प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान बिमला चरण सिंह, रायबहादुर द्वारिका नाथ, श्यामनंदन सहाय आदि ने भी अपने विचार रखे थे और जातीय भेदभाव के मामले को उठाया था।